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    Makar Sankranti 2022: जानें मकर संक्रान्ति के इतिहास, अर्थ एवं महत्व के बारे में

    Jan 13, 2022, 13:37 IST

    Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति का त्योहार भगवान सूर्य को समर्पित है और सूर्य देव की पूजा करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. मकर संक्रांति, इसका इतिहास, महत्व, उत्सव इत्यादि के बारे में विस्तार से यहां पढ़ें.  

    Makar Sankranti: History, Significance and Importance
    Makar Sankranti: History, Significance and Importance

    Makar Sankranti 2022: यह त्योहार उस दिन को चिह्नित करता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. मकर संक्रान्ति भारत के हर राज्य में विभिन्न नामों से मनाया जाता है. कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे संक्रांति ही कहते हैं जबकि तमिलनाडु में इसे पोंगल कहा जाता है. मकर संक्रान्ति, जनवरी महीने की 14वीं या 15वीं तिथि को ही मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं. मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है. यह त्यौहार सूर्य को समर्पित है. 

    मकर संक्रान्ति का महत्व (Importance of Makar Sankranti)

    शास्त्रों के अनुसार  दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात्सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। चूंकि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है।

    मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होते हैं इसी कारण भारत में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति के दिन से  सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना प्रारंभ करते हैं, जिसके कारण इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है।

    अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है| इसी कारणवश मकर संक्रान्ति के अवसर पर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोग विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं|

    नोट: सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है।

    Ganga Sagar

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    मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व

    1. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
    2. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था।
    3. मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
    4. यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रान्ति थी, तभी से मकर संक्रान्ति व्रत का प्रचलन शुरू हुआ।

    देश के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति के अलग-अलग नाम

    लोहड़ी: हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है|

    Lohri

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    'दान का पर्व' या खिचड़ी”: उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक महीने तक लगने वाले माघ मेले की शुरूआत मकर संक्रान्ति के दिन से ही होती है| समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। इस अवसर पर गोरखपुर के गोरखधाम स्थान पर खिचड़ी मेले का आयोजन होता है|

    बिहार में भी मकर संक्रान्ति को "खिचड़ी" नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिउड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।

    महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं।

    बंगाल में इस त्योहार पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।

    राजस्थान में मकर संक्रान्ति के अवसर पर सुहागन महिलाएँ सौभाग्यसूचक वस्तु का पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।

    पोंगल: तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति के अवसर पर पोंगल के रूप में चार दिन तक चलने वाला त्योहार मनाया जाता है|

    “माघ-बिहू” अथवा “भोगाली-बिहू”: असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाया जाता है।

    Bihu

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    पतंगोत्सव: गुजरात में मकर संक्रान्ति के अवसर पर पतंगोत्सव का आयोजन किया जाता है|

    भारत के पड़ोसी देश नेपाल में मकर संक्रान्ति को फसलों एवं किसानों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है|

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    Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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