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    Indian Culture: जानें भारत की मुख्य क्लासिकल डांस फॉर्म्स के बारे में

    Sep 9, 2022, 18:39 IST

    भारत अपनी विविधतापूर्ण संस्कृति के लिए विश्व विख्यात है I भारत में हर राज्य की अपनी एक अलग संस्कृति तथा विरासत हैI भारतीय संस्कृति में नृत्य का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैI

    classical Dance
    classical Dance

    भारत अपनी विविधतापूर्ण संस्कृति के लिए विश्व विख्यात है I भारत में हर राज्य की अपनी एक अलग संस्कृति तथा विरासत हैI भारतीय संस्कृति में नृत्य का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैI भारतीय नृत्य कला के प्रमाण हमें प्रागैतिहासिक काल या Pre-historic era से मिलते हैंI आज हम यहाँ आपके लिए क्लासिकल डान्स की विभिन्न शालियों से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी लायें हैंI आइये जानें भारत के मुख्य 8 क्लासिकल डांस शैलियों के बारे में -

    1. कथक - उत्‍तर भारत
    कथक उत्‍तर भारत का एक मुख्‍य नृत्‍य है ये मुख्‍य रूप से उत्‍तर प्रदेश, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश और यहां तक कि भारत के पश्चिमी और पूर्वी भागों में विकसित हुआ है। ऐसा मानना है कि, इसका संबंध कथाकारों से है, जो प्राचीन समय से आम लोगों को पौराणिक कथाएं, रामायण और महाभारत महाकाव्‍यों जैसे धार्मिक ग्रंथो की कथाएं सुनाया करते थे। मुगल शासनकाल के दौरान यह अपने चरम तक पहुंची। इसके बाद, उन्‍नीसवीं सदी में लखनऊ, जयपुर रायगढ़ के राज दरबार तथा अन्‍य स्‍थान कथक नृत्‍य के मुख्‍य केन्‍द्रों के रूप में उभरे । 

    2. भरतनाट्यम, तमिलनाडु 

    भरतनाट्यम  दक्षिण भारत का एक प्रमुख नृत्‍य है इसकी उत्पत्ति मंदिरों को समर्पित नर्तकों की कला से हुई है और इसे पूर्व में सादिर अथवा दासी अट्टम के रूप में जाना जाता था। यह भारत का ऐसा पहला पारम्‍परिक नृत्‍य है जिसे देश और विदेश दोनों में व्‍यापक स्‍तर पर प्रस्‍तुत किया जाता है। भरतनाट्यम का संगीत दक्षिण भारत के कर्नाटक संगीत से संबंध रखता है। इसकी नृत्‍य गायन प्रस्‍तुति में कम से कम एक गायक, एक मृदंग वादक और एक बांसुरी, वायलिन अथवा वीणा वादक शामिल होता है। इस समूह में एक नट्टूवनर अथवा नृत्‍य निर्देशक भी होता है जो पीतल के मजीरों की जोड़ी को बजाता है।

    3. मणिपुरी नृत्‍य, मणिपुर 
    मणिपुरी नृत्‍य पूर्वोत्‍तर भारत के मणिपुर राज्य से समबन्धित है ये वैष्णव मत से समबन्धित माना जाता है I मणिपुर के मंदिरों में अभी भी इस नृत्य का मंचन होता है। इसमें राधा और कृष्‍ण की से समबन्धित कथाओं का वर्णन होता हैI जगोई और चोलोम मणिपुरी नृत्‍य की दो मुख्‍य शैलियाँ है, भारत के बहुत से अन्‍य नृत्‍यों की भांति इसमें कदमों की आवाज सुनाई नहीं देती जहां इन्‍हें प्राय: ताल को प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। मणिपुरी नृत्‍य में मुख्‍य रूप से मृदंग, ढोल और बासुरी जैसे वादय यंत्रों का उपयोग किया जाता है।

    4. ओडिसी नृत्‍य, ओडिशा (पूर्वी भारत)

    ओडिसी नृत्‍य की उत्‍पति पूर्वी भारत, के ओडिशा राज्य से हुई है। अपने शुरूआती रूप में इसे महरिस अथवा मंदिरों की महिला सेविकाओं द्वारा मंदिर के सेवा कार्यों के रूप में प्रस्‍तुत किया जाता था। इस पारंपरिक नृत्‍य को बीसवीं शताब्‍दी के मध्य में थिएटर कला के रूप में नया स्‍वरूप प्रदान किया गया जिसका संदर्भ केवल विद्यमान नृत्‍य रूप तक सीमित नहीं था बल्कि इसने ओडिशा की मध्‍यकालीन मूर्तिकला, चित्रकला और साहित्‍य में नृत्‍य को प्रस्‍तुत किया।अपने नए स्‍वरूप में ओडिशी नृत्‍य देश भर में तेजी से प्रचलित हुआ। इस नृत्य की विषय वस्तु कृष्‍ण और राधा की कथा है। इसलिए ओडिसी नृत्‍य  में जयदेव के गीतगोविंदम का विशेष स्‍थान हैI 

    5. कथकली - केरल 
    कत्थकली भारत के दक्षिण राज्य केरल से समबन्धित है I इसमें अभिनय, नृत्य और संगीत तीनों का समन्वय होता है। इसमें हाथ के इशारों और चेहरे की भावनाओं के माध्यम से कलाकार अपनी प्रस्तुति देता है। इस नृत्य के विषयों को रामायण, महाभारत और हिन्दू पौराणिक कथाओं से लिया जाता है तथा देवताओं या राक्षसों को दर्शाने के लिये अनेक प्रकार के मुखौटे लगाए जाते हैं। इसे मुख्यत: पुरुष नर्तकों द्वारा ही किया जाता है I 

    6. कुचीपुड़ी -आंध्र प्रदेश
    ये आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कुचीपुड़ी नामक गाँव से सम्बंधित हैI भामाकल्पम् और गोलाकल्पम् इससे जुड़ी 2 नृत्य नाटिकाएँ हैंI कुचीपुड़ी में स्त्री-पुरुष दोनों ही नर्तक भाग लेते हैं और कृष्ण-लीला की प्रस्तुति करते हैं। कुचीपुड़ी में पानी भरे मटके को अपने सिर पर रखकर पीतल की थाली में नृत्य करना बेहद लोकप्रिय है।

    7. मोहिनीअट्टम - केरल 
    ये नृत्य भी केरल से समबन्धित है ये सिंगल महिला द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला नृत्य है, इसमें भरतनाट्यम और कत्थकली दोनों के कुछ तत्त्व शामिल होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने भस्मासुर से शिवजी की रक्षा हेतु मोहिनी रूप धारण कर यह नृत्य किया था।

    8. सत्रीया - असम 
    ये नृत्य असम से सम्बन्धित हैI इसका उद्भव असम के सत्‍तराओं अथवा मठों में सोलहवीं सदी के पश्‍चात हुआ, जब सन्‍त और समाज सुधारक शंकर देव (1449-1586) द्वारा प्रचारित वैष्‍णव धर्म का वहां विस्तार हुआ । यह भारतीय शास्‍त्रीय नृत्‍य रूप के भीतर एक विशिष्‍ट शैली है जो कृष्‍ण भक्ति पर केन्द्रित है I 

    Sonal Mishra
    Sonal Mishra

    Senior Content Writer

    Sonal Mishra is an education industry professional with 6+ years of experience. She has previously worked with Dhyeya IAS and BYJU'S as a state PCS and UPSC content creator. She participated UPPCS mains exam in 2018.and is a postgraduate in geography from CSJMU Kanpur. She can be reached at sonal.mishra@jagrannewmedia.com

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