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    मधुबनी पेंटिंग के बारे में 10 अज्ञात तथ्य

    Oct 9, 2017, 17:47 IST

    मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है. इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है खासकर मिथिला में. इस लेख में मधुबनी पेंटिंग का इतिहास, कैसे यह विश्व में प्रसिद्ध हुई, इसकी क्या खासियत है आदि के बारे में अध्ययन करेंगे.

    Unknown and interesting facts about Madhubani Painting
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    भारत रचनात्मकता, कला और संस्कृति का देश है. मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है. इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है, खासकर मिथिला चूंकि मिथिला क्षेत्र में इस पेंटिंग की शैली की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इसे मिथिला चित्रों के रूप में भी जाना जाता है. समृद्धि और शांति के रूप में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन कलाओं की इस अनूठी शैली का इस्तेमाल महिलाएं अपने घरों और दरवाजों को सजाने के लिए किया करती थी. इस लेख के माध्यम से मधुबनी कला के बारें में जानेंगे.
    मधुबनी पेंटिंग के बारे में 10 अज्ञात और रोचक तथ्य
    1. मधुबनी बिहार में एक जिला है, जिसका अर्थ है शहद का जंगल. यह चित्रकारी मधुबानी जिले की स्थानीय कला है, इसलिए इसका नाम मधुबनी पेंटिंग पढ़ा. यह कला प्रकृति और पौराणिक कथाओं की तस्वीरों विवाह और जन्म के चक्र जैसे विभिन्न घटनाओं को चित्रित करती हैं. मूल रूप से इन चित्रों में कमल के फूल, बांस, चिड़िया, सांप आदि कलाकृतियाँ भी पाई जाती है. इन छवियों को जन्म के प्रजनन और प्रसार के प्रतिनिधित्व के रूप में दर्शाया गया हैं.
    2. मधुबनी पेंटिंग सामान्यतया भगवान कृष्ण, रामायण के दृश्यों जैसे भगवान की छवियों और धार्मिक विषयों पर आधारित हैं. इतिहास के अनुसार, इस कला की उत्पत्ति रामायण युग में हुई थी, जब सीता के विवाह के अवसर पर उनके पिता राजा जनक ने इस अनूठी कला से पूरे राज्य को सजाने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारों का आयोजन किया था.

    Ramayana Era Madhubani Painting
    Source: www.exoticindiaart.com
    3. मधुबनी पेंटिंग को प्राकृतिक रंगों के साथ चित्रित किया जाता है, जिसमें गाय का गोबर और कीचड़ का उपयोग किया जाता है ताकि दीवारों में इन चित्रों को बेहतर बनाया जा सके. कलाकारों ने अपनी कला में केवल प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जिसमें हल्दी, पराग या चुना और नीले रंग को नील से इस्तेमाल करते थे. कुसुम फूल का रस लाल रंग, चंदन या गुलाब के लिए इस्तेमाल किया जाता था. इसी तरह कह सकते है कि कलाकारों ने अपने रंग की जरूरतों के लिए विभिन्न प्राकृतिक सामग्रियों का भी इस्तेमाल किया था जो अपने में एक अनूठी कला को दर्शाता है. मूल रूप से इन पेंटिंग को झोपड़ियों की दीवार पर किया जाता था, लेकिन अब यह कपड़े, हाथ से बने कागज और कैनवास पर भी की जाती है.
    4. मधुबनी चित्रों की खोज कैसे हुई थी: 1930 से पहले मधुबनी क्षेत्र के बाहर कोई भी इस दुर्लभ सजावटी पारंपरिक कला को नहीं जानता था. 1934 में बिहार को बड़े भूकंप का सामना करना पड़ा था. मधुबनी क्षेत्र के ब्रिटिश अधिकारी विलियम जी आर्चर जो भारतीय कला और संस्कृति के बहुत शौकीन थे, ने निरीक्षण के दौरान मधुबनी की क्षतिग्रस्त दीवारों पर इस अनूठी कला को देखा था.

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    5. मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन. भित्ति चित्र विशेष रूप घरों में तीन स्थानों पर मिटटी से बनी दीवारों पर की जाती है: परिवार के देवता / देवी, नए विवाहित जोड़े (कोहबर) के कमरे और ड्राइंग रूम में. अरिपन (अल्पना) कमल, पैर, आदि को चित्रित करने के लिए फर्श पर लाइन खींच कर बनाई जाने वाली एक कला है. अरिपन कुछ पूजा-समारोहों जैसे पूजा, वृत, और संस्कारा आदि विधियों पर की जाती है.
    6. पेंटिंग को कमरों की बाहरी और आंतरिक दीवारों पर और मारबा पर, शादी में, उपनायन (पवित्र थ्रेडिंग समारोह) और त्यौहार जैसे दीपावली आदि कुछ शुभ अवसरों पर किया जाता हैं. सूर्य और चंद्रमा भी चित्रित किये जाते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि वे परिवार में समृद्धि और खुशी लाते हैं.
    7. वनों की कटाई की रोकथाम में यह पेंटिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस अद्भुत कला के बारे में यह एक ऐसा तथ्य है जो इन चित्रों को अद्वितीय बनाता है. मधुबनी कलाकार मधुबनी चित्रों का उपयोग पेड़ों को काटने से रोकने के लिए करते हैं. मधुबनी कला केवल सजावट के लिए ही नहीं है क्योंकि इन चित्रों में से अधिकांश चित्र हिंदू देवताओं को चित्रित करते हैं. कलाकार हिंदू देवताओं के चित्र को पेड़ों पर बनाते हैं, जिसके कारण लोग पेड़ों को काटने से रुक जाते है या फिर उन्होंने पेड़ों को काटना बंद कर दिया है.

    Madhubani painting is used for deforestation
    Source: www.wordpress.com
    8. इस पारंपरिक मधुबनी कला को बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं किया करती थी. लेकिन आज, चीजें बदल गई हैं और अब यह शैली न केवल भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय है, बल्कि अन्य देशों के लोगों, खासकर अमेरिका और जापान के बीच भी लोकप्रिय है. पारंपरिक समय के दौरान, इस प्रकार की पेंटिंग को मिटटी से बनी दीवारों पर किया जाता था जिन पर ताज़ा प्लास्टर होता था. अब, इसे कैनवास, कुशन, कागज यहां तक कि कपड़े पर मधुबनी पेंटिंग को किया जाता हैं. अब तो लोग बर्तनों और यहां तक कि चूड़ियों पर भी मधुबनी कलाकृति को कर रहे हैं.
    9. मधुबनी पेंटिंग की अंतर्राष्ट्रीय मांग भी हैं. जापान के लोग भारत की मधुबनी कला से बहुत परिचित हैं और यह कई अन्य देशों में प्रसिद्ध और सराही जाती है. एक 'मिथिला संग्रहालय', जापान के निगाटा प्रान्त में टोकामाची पहाड़ियों में स्थित एक टोकियो हसेगावा की दिमागी उपज है, जिसमें 15,000 अति सुंदर, अद्वितीय और दुर्लभ मधुबनी चित्रों के खजाने को रखा गया है.
    10. इस कला को समर्पित संगठन: भारत की इस दुर्लभ कला के समर्थन में काम करने वाले कई संगठन हैं. भारत और विदेशों में मधुबनी चित्रों का संग्रह युक्त कई अनन्य गैलरी हैं बेंगलुरु में, दिल्ली और बिहार में कई गैर-लाभकारी संगठन मधुबनी कलाकारों के साथ काम करने और उनकी सहायता करने के लिए काम कर रहे हैं.
    मधुबनी शहर में एक स्वतंत्र कला विद्यालय मिथिला कला संस्थान (एमएआई) की स्थापना जनवरी 2003 में ईएएफ द्वारा की गई थी, जो कि मधुबनी चित्रों के विकास और युवा कलाकारों का प्रशिक्षण के लिए है.
    मिथीलासिमिता एक ऐसा संगठन है, जो कुछ उद्यमियों द्वारा बनाई गई एक संस्था बेंगलुरु, भारत में स्थित है.
    उपरोक्त लेख से मधुबनी कला के बारे में ज्ञात होता है और अब यह कला भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में भी प्रसिद्ध हो रहीं हैं.

    Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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