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    भारत के इस गांव में सभी करते हैं संस्कृत में बातचीत, हर परिवार में है कम से कम एक इंजीनियर; जानें कर्नाटक के मत्तूर गांव के बारे में

    Nov 16, 2021, 14:32 IST

    Mattur Village: मत्तूर दुनिया के उन गिने-चुने स्थानों में से एक है जहां के निवासी अभी भी संस्कृत की शास्त्रीय भाषा में बातचीत करते हैं। यहां के ग्रामीण 21वीं सदी में भी वैदिक जीवन शैली का नेतृत्व करते हैं और गांव की पाठशाला में देश-विदेश से भी कई छात्र संस्कृत भाषा सीखने आते हैं। 

    Mattur Village: भारत के इस गांव में सभी करते हैं संस्कृत में बातचीत, हर परिवार में है कम से कम एक इंजीनियर
    Mattur Village: भारत के इस गांव में सभी करते हैं संस्कृत में बातचीत, हर परिवार में है कम से कम एक इंजीनियर

    Mattur Village: कर्नाटक के मत्तूर गांव में आप किसी भी घर में प्रवेश करेंगे तो आपका स्वागत भवत: नाम किम (आपका नाम क्या है?), कथम् अस्ति भवान् (आप कैसे हैं?) आदि से किया जाएगा। मत्तूर दुनिया के उन गिने-चुने स्थानों में से एक है जहां के निवासी अभी भी संस्कृत की शास्त्रीय भाषा में बातचीत करते हैं।

    कर्नाटक के हरे-भरे शिमोगा जिले में बसा मत्तूर बारहमासी तुंगा नदी के तट पर बसा एक छोटा सा गांव है। मत्तूर के ग्रामीण जो वैदिक जीवन शैली का नेतृत्व करते हैं, वह रोजाना प्राचीन ग्रंथों का जाप करते हैं और संस्कृत में बातचीत करते हैं। 

    संस्कृत गांव की प्राथमिक भाषा कैसे बनी (How Sanskrit became the primary language of Mattur village )?

    ये सब 1981 में शुरू हुआ जब शास्त्रीय भाषा को बढ़ावा देने वाली संस्था संस्कृति भारती ने मत्तूर में 10 दिवसीय संस्कृत कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में उडुपी के पेजावर मठ के साधू ने भी भाग लिया था।

    ग्रामीणों की उत्सुकता को देखकर साधू ने कथित तौर पर कहा, "एक जगह जहां लोग संस्कृत बोलते हैं, जहां पूरा घर संस्कृत में बात करता है! आगे क्या? एक संस्कृत गांव!" यह एक ऐसा आह्वान था जिसे मत्तूर के निवासियों ने गंभीरता से ले लिया और इस तरह संस्कृत गाँव की प्राथमिक भाषा बन गई।

    मत्तूर गांव के बारे में (About Mattur Village)

    मत्तूर एक कृषि प्रधान गांव है जो मुख्य रूप से सुपारी और धान की खेती करता है। यह एक प्राचीन ब्राह्मण समुदाय संकेथियों का निवास है, जो लगभग 600 साल पहले केरल से मत्तूर आए थे और फिर यहीं बस गए। संस्कृत के अलावा, वे संकेती नामक एक दुर्लभ भाषा भी बोलते हैं, जो संस्कृत, तमिल, कन्नड़ और तेलुगु के अंशों का मिश्रण है। संकेती बोली की कोई लिखित लिपि नहीं है और इसे देवनागरी लिपि में पढ़ा जाता है।

    मत्तूर में सब्जी विक्रेता से लेकर पुजारी तक सभी संस्कृत समझते हैं। जहां एक ओर बुजुर्गों के एक समूह को नदी के किनारे वैदिक भजन गाते हुए सुना जा सकता है, वहीं दूसरी ओर युवकों को भी प्राचीन भाषा में बातचीत करते हुए देखा जा सकता है। छोटे बच्चे भी आपस में बात करते हुए, झगड़ते हुए या मैदान में क्रिकेट खेलते हुए संस्कृत ही बोलते हैं।

    गांव की दीवारों पर चित्रित नारे प्राचीन उद्धरण हैं जैसे कि मार्गे स्वच्छता विराजते, ग्राम सुजाना विराजंते (सड़क के लिए स्वच्छता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना अच्छे लोग गांव के लिए हैं)। कुछ घरों के दरवाजे पर "आप इस घर में संस्कृत बोल सकते हैं" गर्व से लिखा हुआ है।

    मत्तूर गांव का संस्कृत पाठ्यक्रम (Mattur Village Sanskrit Course)

    मत्तूर गाँव में एक केंद्रीय मंदिर और पाठशाला है। पाठशाला में पारंपरिक तरीके से वेदों का उच्चारण किया जाता है। विद्यार्थी पाँच वर्षीय पाठ्यक्रम में गाँव के बुजुर्गों की निगरानी में वेदों को सीखते हैं।

    पाठशाला के छात्र पुराने संस्कृत के पत्तों को भी इकट्ठा करते हैं, कंप्यूटर पर स्क्रिप्ट का विस्तार करते हैं और वर्तमान संस्कृत में क्षतिग्रस्त पाठ को फिर से लिखते हैं ताकि इसे प्रकाशन के रूप में आम आदमी को उपलब्ध कराया जा सके। इस गांव की पाठशाला में विदेशों से भी कई छात्र संस्कृत भाषा सीखने आते हैं। 

    जिले के बेहतरीन अकादमिक रिकॉर्ड (District's best academic records)

    मत्तूर के स्कूलों के नाम जिले के कुछ बेहतरीन अकादमिक रिकॉर्ड दर्ज हैं। शिक्षकों के अनुसार, संस्कृत सीखने से छात्रों में गणित और तर्क की योग्यता विकसित होती है। मत्तूर के कई युवा इंजीनियरिंग या मेडिसिन की पढ़ाई के लिए विदेश गए हैं और गांव में हर परिवार में कम से कम एक इंजीनियर है!

    30 से अधिक संस्कृत के प्रोफेसर मत्तूर से हैं, जो कुवेम्पु, बेंगलुरु, मैसूर और मैंगलोर विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। मत्तूर कई प्रसिद्ध हस्तियों का गृह ग्राम भी है, जिसमें भारतीय विद्या भवन, बैंगलोर के माथुर कृष्णमूर्ति, वायलिन वादक वेंकटराम और गामा के प्रतिपादक एचआर केशवमूर्ति शामिल हैं।

    देश की 1% से भी कम आबादी संस्कृत बोलती है और ऐसे समय में मत्तूर के ग्रामीण अपने दैनिक जीवन में न केवल भाषा का उपयोग करते हैं, बल्कि इच्छुक व्यक्तियों को इसे सिखाने के लिए भी तैयार हैं। उनका सराहनीय प्रयास आने वाले वर्षों में इस प्राचीन भाषा को जीवित रखने की दिशा में एक लंबा सफर तय करेगा।

    Arfa Javaid
    Arfa Javaid

    Content Writer

    Arfa Javaid is an academic content writer with 2+ years of experience in in the writing and editing industry. She is a Blogger, Youtuber and a published writer at YourQuote, Nojoto, UC News, NewsDog, and writers on competitive test preparation topics at jagranjosh.com

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