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    Medical Oxygen: क्या है मेडिकल ऑक्सीजन, कैसे बनती है और कोविड-19 महामारी के दौर में इसकी किल्लत क्यों हो रही है?

    Apr 22, 2021, 14:27 IST

    मेडिकल ऑक्सीजन एक आवश्यक दवा है जिसे साल 2015 में जारी की गई अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया था। इसमें 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन होती है और अन्य गैस, नमी, धूल आदि अशुद्धियां नहीं होती हैं। 

    Medical Oxygen
    Medical Oxygen

    कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने जहां एक ओर तबाही मचा रखी है वहीं दूसरी ओर केंद्र और राज्य सरकारों के बड़े-बड़े दावों की पोल भी खोल दी है। मरीजों को अस्पताल में न तो बेड मिल रहे हैं, न दवा और न ही मेडिकल ऑक्सीजन। कोविड-19 से संक्रमित जिन मरीजों की हालत गंभीर हो जाती है उनके लिए मेडिकल ऑक्सीजन अहम दवा है। आइए इस लेख में जानते हैं कि क्या है मेडिकल ऑक्सीजन, इसे कैसे बनाया जाता है, ये अस्पतालों तक कैसे पहुंचती है और देश में मेडिकल ऑक्सीजन की मौजूदा स्थिति क्या है?

     मेडिकल ऑक्सीजन क्या है?

    मेडिकल ऑक्सीजन एक आवश्यक दवा है जिसे साल 2015 में जारी की गई अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया था। इतना ही नहीं, मेडिकल ऑक्सीजन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) द्वारा जारी की गई आवश्यक दवाओं की सूची में भी शामिल है। मेडिकल ऑक्सीजन में 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन होती है और अन्य गैस, नमी, धूल आदि अशुद्धियां नहीं होती हैं। 

    मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनाई जाती है?

    जैसा कि हम सभी जानते हैं, ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में मौजूद होती है। हवा में 21% ऑक्सीजन, 78% नाइट्रोजन और 1% अन्य गैसें मौजूद हैती हैं जैसे हाइड्रोजन, नियोन, जीनोन, हीलियम और कार्बन डाईऑक्साइड मौजूद होती हैं। वहीं पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होती है जिस वजह से इंसान पानी में आसानी से सांस नहीं ले पाता है। पानी में मौजूद 10 लाख मॉलिक्यूल्स में से ऑक्सीजन के 10 मॉलिक्यूल्स होते हैं। 

    ऑक्सीजन प्लांट में मौजूद एयर सेपरेशन की तकनीक से हवा से ऑक्सीजन को अलग कर लिया जाता है। इसमें हवा को पहले कंप्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर की मदद से इसमें से अशुद्धियां निकाल दी जाती हैं। अब फिल्टर हुई हवा को ठंडा करने के बाद डिस्टिल किया जाता है जिससे ऑक्सीजन को बाकी गैसों से आसानी से अलग किया जा सके। इस पूरी प्रक्रिया में हवा में मौजूद ऑक्सीजन लिक्विड में तबदील हो जाती है और इसे स्टोर किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद स्टोर की जाने वाली ऑक्सीजन को ही मेडिकल ऑक्सीजन कहा जाता है। 

    मौजूदा वक्त में मेडिकल ऑक्सीजन एक और तरीके से बनाई जाती है। इसमें एक पोर्टेबल मशीन आती है जो हवा से ऑक्सीजन को अलग कर मरीज तक पहुंचाने में सक्षम है। इस मशीन को मरीज के पास रख दिया जाता है और ये लगातार मरीज तक मेडिकल ऑक्सीजन पहुंचाती रहती है। 

    मेडिकल ऑक्सीजन को अस्पतालों तक कैसे पहुंचाया जाता है?

    ऊपर बताई गई प्रक्रिया से तैयार की गई मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े-बड़े टैंकरों में स्टोर किया जाता है। इसके बाद इसे कैप्सूल के आकार के बेहद ठंडे रहने वाले क्रायोजेनिक टैंकरों में भरकर डिस्ट्रीब्यूटर और अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। अस्पताल द्वारा इन टैंकरों को मरीजों के पास पहुंच रहे पाइप्स से जोड़ दिया जाता है। जिन अस्पतालों के पास ये सुविधा नहीं होती है वहां पर लिक्विड ऑक्सीजन को डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा गैस में तब्दील कर ऑक्सीजन के सिलेंडर में भरकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। इन अस्पतालों में मरीजों के बिस्तर के पास ऑक्सीजन के सिलेंडर लगाए जाते हैं।

    देश में मेडिकल ऑक्सीजन की मौजूदा स्थिति क्या है?

    भारत में कुल 10-12 मेडिकल ऑक्सीजन के बड़े निर्माता हैं और 500 से ज्यादा छोटे गैस प्लांट्स में इसे बनाया जाता है। आईनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स देश का सबसे बड़ा मेडिकल ऑक्सीजन का निर्माता है, जो कि गुजरात में स्थित है। इसके अलावा दिल्ली में स्थित गोयल एमजी गैसेस, कोलकाता में स्थित लिंडे इंडिया लिमिटेड और चेन्नई में स्थित नेशनल ऑक्सीजन लिमिटेड देश के बड़े मेडिकल ऑक्सीजन निर्माताओं की सूची में शामिल हैं। 

    भारत की मेडिकल ऑक्सीजन की उत्पादन क्षमता 6,400 मीट्रिक टन है और कोविड-19 की भयावह स्थिति के मद्देनज़र देश में 15 अप्रैल 2021 तक मेडिकल ऑक्सीजन की खपत 4,795 मीट्रिक टन हो गई थी। अचानक से बढ़ी मांग के चलते ऑक्सीजन की सप्लाई में दिक्कत आ रही है क्योंकि पूरे देश में केवल 1200 से 1500 क्राइजोनिक टैंकर ही उपलब्ध हैं। डिस्ट्रीब्यूटर्स के पास भी लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदल कर सिलेंडरों में भरने के लिए खाली सिलेंडरों की कमी है।

    कई राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी के चलते केंद्र सरकार ने इसकी सप्लाई के लिए उद्योग जगत से बातचीत की थी। इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ भी इस मुद्दे पर चर्चा की थी और उनसे मेडिकल ऑक्सीजन टैंकरों को शहर में लाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाने की अपील की थी। 

    नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) के अनुसार, केंद्र सरकार ने मेडिकल ऑक्सीजन की प्राइस कैपिंग का फासला किया है जिसके तहत कंपिनयां सितंबर 2021 तक मेडिकल ऑक्सीजन की कीमतों में तय सीमा से ज्यादा की बढ़ोतरी नहीं कर पाएंगी। 

    आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मेडिकल ऑक्सीजन की कीमत 15.22 रुपये क्युबिक मीटर तय की गई है और मैन्युफैक्चरर को इसी दाम में इसे बेचना होगा। इसमें जीएसटी (GST) शामिल नहीं है। वहीं,  मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर का भाव 25.71 रुपये प्रति क्युबिक मीटर है जिसमें जीएसटी (GST) और ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा शामिल नहीं है।

    इंसान को कितनी ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है?

    एक वयस्क को आराम करते वक्त भी 24 घंटे में करीब 550 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन की जरूरत होती है और मेहनत का काम या वर्जिश करने पर अधिक मात्रा में ऑक्सीजन चाहिए होती है। एक स्वस्थ वयस्क एक मिनट में 12 से 20 बार सांस लेता है। यदि कोई व्यक्ति एक मिनट में 12 से कम या 20 से ज्यादा बार सांस लेता है तो वह किसी परेशानी से ग्रसित है। एक स्वस्थ्य व्यक्ति के ब्लड में ऑक्सीजन का सैचुरेशन लेवल 95 से 100 फीसदी के बीच होता है। कोविड-19 महामारी के दौर में अगर किसी व्यक्ति का ऑक्सीजन लेवल 92 फीसदी से नीचे है तो उसकी हालत गंभीर है।  

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    Arfa Javaid
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    Arfa Javaid is an academic content writer with 2+ years of experience in in the writing and editing industry. She is a Blogger, Youtuber and a published writer at YourQuote, Nojoto, UC News, NewsDog, and writers on competitive test preparation topics at jagranjosh.com

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